Mahashivratri 2022
महाशिवरात्रि 2022: क्या Mahashivratri पर व्रत करने से मुक्ति संभव है?
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महाशिवरात्रि क्यों मनाते है?
Mahashivratri Puja in Hindi: अधिकांश समाधिस्थ रहने वाले देव, कामदेव को भस्म करने वाले एवं पार्वती को अमरमन्त्र सुनाने वाले तमोगुण प्रधान शिव जी शिवरात्रि के अवसर पर अनन्य रूप से पूजे जाते हैं। भक्तों द्वारा व्रत रखा जाता है और रात भर जागकर शिवजी की पूजा अर्चना की जाती है। महाशिवरात्रि के दिन माता पार्वती और भगवान शिवजी का विवाह हुआ था। इस दिन लड़कियाँ शिव जैसा पति पाने की आकांक्षा के साथ व्रत रखती हैं। किंतु वास्तविकता यह है कि वेदों का सार कही जाने वाली श्रीमद्भगवत गीता में व्रतादि के लिए मना किया गया है। शिवलिंग पूजा, मूर्ति पूजा करना गलत शास्त्रविरूद्ध साधना है।
Mahashivratri Puja Vrat in Hindi: क्या शिव लिंग पूजा और व्रत रखना सही है?
कबीर साहेब कहते हैं-
धरै शिव लिंगा बहु विधि रंगा, गाल बजावैं गहले |
जे लिंग पूजें शिव साहिब मिले, तो पूजो क्यों ना खैले ||
भगवान शिव की सही भक्ति विधि क्या है?
पवित्र श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय 7 के श्लोक 12 से 15 में गीता ज्ञान दाता बता रहा है कि जो साधक तीन गुण (रजोगुण ब्रह्मा जी, सत्वगुण विष्णु जी, तमगुण शिवजी) की भक्ति करते है वे राक्षस स्वभाव को धारण करने वाले है और वे सर्व मनुष्यों में नीच प्राणी है। पवित्र गीता जी के इसी विधान अनुसार भस्मागिरी नामक एक शिव भक्त ने 12 वर्षो तक एक पैर पर खड़ा होकर घोर तप किया, परिणाम स्वरूप जगत में एक राक्षस की उपाधि को प्राप्त कर मृत्यु के हवाले हो गया।
शिव जी नही है अंतर्यामी
पवित्र श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय 7 के श्लोक 5 और 6 में बताया गया है कि जो साधक मनमाने घोर तप को तपते है वे शरीर के कमलों में बैठे देवताओं और उस अंतर्यामी परमात्मा को दुखी करने वाले मूढ़ व्यक्ति है। यदि भगवान शिव अंतर्यामी परमात्मा होते तो वे भस्मासुर के मन की वृत्ति को जान लेते कि यह असुर स्वभाव वाला व्यक्ति माता पार्वती से विवाह करने हेतु तप कर रहा है और उसे कभी वरदान नहीं देते।
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पवित्र श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय 16 के श्लोक 23 और 24 में बताया है कि जो साधक शास्त्र विधि को त्याग कर मनमाना आचरण करता है, अपनी इच्छा से भक्ति क्रियाओं को करता है उसकी साधना व्यर्थ है। भगवान शिव ने पवित्र अमरनाथ धाम में माता पार्वती जी को तारक मंत्र प्रदान किए थे, जिसे पाने के बाद उनकी आयु भगवान शिव के समान हो गई थी। माता पार्वती जी के 107 जन्म हो चुके थे, देवर्षि नारद जी के ज्ञानुपदेश के बाद उन्होंने भगवान शिव को अपने पति नहीं बल्कि एक गुरु के रूप में धारण किया तत्पश्चात् उन्हें उतना अमृत्व मिला जितना भगवान शिव दे सकते थे।
भगवान शिव से ऊपर सर्वश्रेष्ठ परमेश्वर कौन भगवान है?
भगवान शिव की उत्पत्ति माता दुर्गा व पिता सदाशिव यानी ब्रह्म-काल से हुई है। जो भगवान शिव से ऊपर की शक्ति हैं।
गीता अध्याय 15 श्लोक 16, 17 में 3 प्रभु के विषय मे बताया है-
क्षर पुरुष जिसे ब्रह्म काल भी कहते हैं, जो 21 ब्रह्मांडों का मालिक है।
अक्षर पुरुष जिसे अक्षर ब्रह्म, पर ब्रह्म भी कहते हैं, जो सात संख ब्रह्मांड का मालिक है।
उपरोक्त दोनों क्षर और अक्षर पुरुष नाशवान प्रभु बताए हैं।
तीसरा परम अक्षर ब्रह्म जो कुल का मालिक है, असंख्य ब्रह्मांड का मालिक है, सारी सृष्टि का रचनहार है, वो अविनाशी भगवान है।
इससे सिद्ध होता है कि भगवान शिव पूर्ण परमात्मा नहीं हैं, उनसे ऊपर ब्रह्म, परब्रह्म और परम अक्षर ब्रह्म है। परम अक्षर ब्रह्म ही सुप्रीम गॉड हैं और उनका नाम कबीर साहेब जी है।
पूर्ण परमात्मा को कैसे प्राप्त करें
पूर्ण परमात्मा कविर्देव वेदों में बताए अपने विधान अनुसार अपनी प्यारी आत्माओं को आकर मिलते है उन्हे तत्वज्ञान का उपदेश कर तारक मंत्र बताते है। भगवान शिव के गुरु स्वयं कबीर परमेश्वर ही है, उन्होंने ही इन 5 (वर्तमान में 7) तारक मंत्रों का आविष्कार किया है। गीता अध्याय 17 के श्लोक 23 में बताए गए ॐ तत् सत् मंत्रो का आविष्कार भी उन्होंने ही किया है। वर्तमान समय में केवल जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज ही इन तारक मंत्रो के देने के अधिकारी है व भगवान शिव की सत्य साधना भी केवल संत रामपाल जी महाराज जी के पास ही है
वास्तविक पूजा क्या है?
परमात्मा कबीर साहेब ने पाखंड पूजा तथा शास्त्रविरूद्ध साधना को त्यागकर पूर्ण सतगुरु से सतनाम-सारनाम लेकर सुमिरण करने को कहा है जिससे पूरा परिवार भवसागर से पार उतरकर सुखसागर को प्राप्त होता है। अतः शिवरात्रि जैसी शास्त्रविरुद्ध साधना से दूर रहकर सतभक्ति करना चाहिए। इसी तरह की सतभक्ति करके नामदेव जी, दादू जी, धर्मदास जी आदि मोक्ष के अधिकारी बने।
अधिक जानकारी लिए संत रामपाल जी महाराज एप्प को डाउनलोड कर उनकी पवित्र पुस्तकों को पढ़ें और उनके सत्संग श्रवण कर सतज्ञान ग्रहण करें
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