Miracles of Kabir das ji

 मृत लड़के को जीवित करना

इतना चमत्कार देखने के बाद स्वाभाविक रूप से सिकन्दर लोदी की आस्था कबीर साहेब में हो गई थी। इस बात का सिकन्दर लोदी के पीर शेख तकी को अफसोस था। शेख तकी का कहना था कि अगर कबीर जी अल्लाह हैं तो किसी मुर्दे को जीवित कर दें मैं उन्हें अल्लाह मान लूंगा। सुबह एक 10-12 वर्ष की आयु के लड़के का शव पानी मे तैरता हुआ आ रहा था। कबीर साहेब ने शेख तकी से पहले जीवित करने का प्रयास करने के लिए कहा। शेखतकी ने जंत्र-मन्त्र से प्रयत्न किया लेकिन लड़का जीवित नहीं हुआ। तब कबीर साहेब ने अपने आदेश से लड़के को जीवित कर दिया। आसपास के सभी लोगों ने कहा कमाल हो गया! कमाल हो गया और उस लड़के का नाम कमाल रखा गया


52 cruelities on kabir das
Can We Attain the Supreme Almighty? 
Sheik Taki's 52 Cruelties
On Lord Kabir
Spiritual morning
Indian saint
Constitution of india
Creator of universes
How do you know if your having a spiritual awakening 🌟
Fact of spirituality | Thursdays tips and questions | Spiritual awaking | Healthy lifestyle motivation | Daily inspirations | aesthetic wallpaper | Spiritual journey | Spiritual growth | God quotes | Good thought for the day | The spiritual talks | Thursday morning | Nature's belonging How do you know if your having a spiritual awakening? What does spiritual enlightenment feel like? How do I start being spiritual? What is the awakening? What happens when you open you 

भैसें से वेद मंत्र बुलवाना

एक समय एक तोताद्रि नामक स्थान पर सत्संग था। सभी पंडित सत्संग में तो छुआछूत न करने के उपदेश दे रहे थे किन्तु व्यवहार में वही अज्ञान भरा था। कबीर साहेब स्वामी रामानन्द जी के साथ गए। सत्संग के पश्चात भण्डारा शुरू हुआ। वहाँ उपस्थित पंडितों ने कबीर साहेब को देखकर कहा कि चार वेद मंत्र सुनाने वाले ब्राह्मण एक भंडारे में बैठेंगे व बाकी अन्य भंडारे में बैठेंगे। प्रत्येक व्यक्ति को वेद के चार मन्त्र बोलने पर प्रवेश मिल रहा था। जब कबीर साहेब की बारी आई तब कबीर साहेब ने थोड़ी सी दूरी पर घास चरते हुए भैंसे को पास बुलाया तब कबीर जी ने भैंसें की कमर पर थपकी दी और कहा कि भैंसे इन पंडितों को वेद के चार मन्त्र सुना दे। भैंसे ने छः मन्त्र सुना दिए। इतना सुनकर पंडित परमेश्वर के चरणों पर गिर गए व नामदीक्षा ली।


Sheik Taki's 52 Cruelties

On Lord Kabir


शेख तकी की बेटी को जीवित करना

मुस्लिम पीर शेख तकी ने कहा कि लड़का कमाल पहले से ही जीवित रहा होगा इसलिए जीवित हो गया। कबीर जी को तो तब अल्लाह मानेंगे जब वे मेरी कब्र में दफन बेटी को जीवित करेंगे। कबीर साहेब ने शेख तकी से पहले प्रयास करने के लिए कहा। इस बार उपस्थित लोगों ने कहा कि कबीर साहेब यदि शेख तकी अपनी बेटी जीवित कर सकता तो उसे मरने ही नहीं देता आप प्रयास करें।


कबीर साहेब ने शर्त स्वीकार करते हुए सैकड़ों लोगों की उपस्थिति में उस पुत्री को भी जीवित कर दिया। उस लड़की का नाम कमाली रखा गया।  


स्वामी रामानंद को जीवित करना

दिल्ली के बादशाह सिकंदर लोदी ने स्वामी रामानंद जी की गर्दन तलवार से काट के हत्या कर दी थी। हत्या के बाद सिकन्दर लोदी बहुत पछताया और कबीर साहेब के आने का इंतजार करने लगा। ज्यों ही परमात्मा कबीर साहेब आए सिकन्दर लोधी उनके चरणों मे गिर पड़ा और क्षमा याचना करने लगा। साहेब कबीर जी ने सिकन्दर लोधी को आशीर्वाद दिया और इतने मात्र से ही सिकन्दर लोधी का सारा रोग दूर हो गया। वे और भी दुखी हुए यह सोचकर कि अब जब कबीर साहेब को पता चलेगा कि मैंने उनके गुरुदेव की हत्या कर दी है तो वे क्रोधित होकर फिर श्राप न दे दें। सिकन्दर लोधी ने जब उन्हें सारी बात बताई तो कबीर साहेब कुछ नहीं बोले। भीतर गए तो कबीर साहेब जी ने देखा कि रामानंद जी का धड़ कही और सिर कही पर पड़ा था। तब कबीर साहेब ने मृत शरीर को प्रणाम किया और कहा कि उठो गुरुदेव आरती का समय हो गया, यह कहते ही सिर अपने आप उठकर धड़ पर लग गया और रामानंद जी जीवित हो गए।।




कबीर साहेब के चमत्कार: सेऊ को जीवित करना

एक बार कबीर साहेब अपने दो सेवकों (कमाल और फरीद) के साथ अपने शिष्य सम्मन के घर गए। सम्मन वैसे तो बहुत निर्धन था, लेकिन उसकी आस्था कबीर साहेब में बहुत थी। सम्मन इतना निर्धन था कि बहुत बार तो उसके पास खाने के लिए खाना भी नहीं होता था, उस दिन भी कुछ ऐसा ही था। जब नेकी (सम्मन की पत्नी) ने देखा कि उधार मांगने पर भी कोई आटा उधार नहीं दे रहा तो उसने सेऊ और सम्मन को कहा कि तुम चोरी कर आओ, जब हमारे पास आटा होगा तो हम वापिस कर देंगे। जब सेऊ चोरी करने गया तो पकड़ा गया और सम्मन ने बदनामी के डर से सेऊ की गर्दन काट दी। सुबह होते ही नेकी ने भोजन तैयार किया और कबीर साहेब को एहसास तक नहीं होने दिया कि सेऊ मर चुका है। कबीर साहेब तो परमात्मा थे उन्होंने सिर्फ इतना कहा था



आओ सेऊ जीम लो, यह प्रसाद प्रेम।
शीश कटत हैं चोरों के, साधों के नित्य क्षेम।।

इतना कहते ही सेऊ भागा चला आया और खाना खाने लगा
 
Kabir sakhi/Kabir wani/ Kabir k dohe / sant Kabir/sat Kabir / Allah Kabir /guru Kabir/ Kabir jayanti photos/ Kabir images/ sant Kabir wallpaper/ satguru Kabir hd images/ god Kabir/Lord Kabir/ worship/wishes/ spirituality/spiritual quotes/ daily routine/ positive thoughts/positive quotes/mind blowing ideas

काशी नगर में भोजन-भण्डारा (लंगर) देना 

पारख के अंग की वाणी नं. 793-824 का सरलार्थ:– कबीर परमेश्वर जी को काशी शहर से भगाने के उद्देश्य से हिन्दू तथा मुसलमानों के धर्मगुरूओं तथा धर्म के प्रचारकों ने षड़यंत्र के तहत झूठी चिट्ठी में निमंत्रण भेजा कि कबीर जुलाहा तीन दिन का भोजन-भंडारा (लंगर) करेगा। प्रत्येक बार भोजन खाने के पश्चात् दस ग्राम स्वर्ण की मोहर (सोने का सिक्का) तथा एक दोहर (खद्दर की दोहरी सिली चद्दर जो कंबल के स्थान पर सर्दियों में ओढ़ी जाती थी) दक्षिणा में देगा। भोजन में सात प्रकार की मिठाई, हलवा, खीर, पूरी, मांडे, रायता, दही बड़े आदि मिलेंगे। सूखा-सीधा (एक व्यक्ति का आहार, जो भंडारे में नहीं आ सका, उसके लिए) दिया जाएगा। यह सूचना पाकर दूर-दूर के संत अपने शिष्यों समेत निश्चित तिथि को पहुँच गए। काजी तथा पंडित भी उनके बीच में पहुँच गए। चिट्ठी जंबूदीप (पुराने भारत) में सब जगह पहुँची। {ईराक, ईरान, गजनवी, तुर्की, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बिलोचिस्तान, पश्चिमी पाकिस्तान आदि-आदि सब पुराना भारत देश था।} संतजन कहाँ-कहाँ से आए? सेतुबंध, रामेश्वरम्, द्वारका, गढ़ गिरनार, मुलतान, हरिद्वार, बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगा घाट। अठारह लाख तो साधु-संत व उनके शिष्य आए थे। अन्य अनाथ (बिना बुलाए) अनेकों व्यक्ति भोजन खाने व दक्षिणा लेने आए थे। जो साधु जिस पंथ से संबंध रखते थे, उसी परंपरागत वेशभूषा को पहने थे ताकि पहचान रहे। अपने पंथ की प्रचलित साधना कर रहे थे। कोई (बाजे) वाद्य यंत्र बजाकर नाच-नाचकर परमात्मा की स्तूति कर रहे थे।

कोई आक तथा धतूरे को खा रहे थे जो बहुत कड़वा तथा नशीला होता है। कोई खड़घास खा रहे थे। कोई उल्टा लटककर वृक्ष के नीचे साधना कर रहा था। कोई सिर नीचे पैर ऊपर को करके साधना यानि तप कर रहा था। कोई केवल पाँच ग्रास भोजन खाता था। उसका यह नियम था। कोई (मुँहमुंदिया) मुख पर पट्टी बांधकर रखने वाले थे। कोई शरीर के ऊपर (खेह) राख लगाए हुए थे। कोई पाँच धूने लगाकर तपस्या कर रहा था। कोई तिपाई के ऊपर मटके को रखकर उसमें सुराख करके पानी डालकर नीचे बैठकर जल धारा यानि झरना साधना कर रहे थे। कई नंगे थे। कई केवल कोपीन बांधे हुए थे। कोई अपनी गर्दन के ऊपर दोनों पैर रखकर आसन कर रहे थे। कोई (ठाडेसरी) खडे़ होकर तपस्या कर रहे थे। किसी ने मौन धारण कर रखा था। जो बड़बड़ कर थे, वे भी अनेकों आए थे। कुछ ऊँचे स्वर से भगवान के शब्द गा रहे थे। अनेकों ऐसे थे जिनके साथ कोई चेला नहीं था। उनका कोई सम्मान नहीं कर रहा था। कोई सिरड़े-भिरडे़ (बिना स्नान किए मैले-कुचैले वस्त्र पहने) रेत-मिट्टी में पड़े थे। संत गरीबदास जी दिव्य दृष्टि से देखकर कह रहे हैं कि काशी पुरी में किलकारी पड़ रही थी। कोई सिर के ऊपर बड़े-बड़े बालों की जटा रखे हुए थे। कोई-कोई मूंड-मुंडाए हुए थे। कोई अपने पैरों में लोहे की जंजीर बांधे हुए था। कोई लोहे की कोपीन (पर्दे पर लोहे की पतली पत्ती लगाए हुए था) बांधे हुए था। कोई केले के पत्तों का लंगोट बांधे हुए था। कोई त्राटक ध्यान लगा रहा था। कोई आँख खोल ही नहीं रहा था। कोई कान चिराए हुए था। इस प्रकार के अनेकों पंथों के शास्त्र विरूद्ध साधना करने वाले परमात्मा को चाहने वाले (भेष) पंथ काशी में परमेश्वर कबीर जी द्वारा दिए गए भंडारे के निमंत्रण से इकट्ठे हुए थे। अठारह लाख तो साधु-शिष्य वेश वाले थे। अन्य सामान्य नागरिक भी अनेकों आए थे।


केशोआया है बनजारा,काशील्याया मालअपारा।।टेक।।
नौलख बोडी भरी विश्म्भर, दिया कबीर भण्डारा। धरती उपर तम्बू ताने, चैपड़ के बैजारा।।1।।
कौन देश तैं बालद आई, ना कहीं बंध्या निवारा। अपरम्पार पार गति तेरी, कित उतरी जल धारा।।2।।
शाहुकार नहीं कोई जाकै, काशी नगर मंझारा। दास गरीब कल्प से उतरे, आप अलख करतारा।।3।।

पारख के अंग की वाणी नं. 825-837 का सरलार्थ:– संत रविदास जी सुबह जंगल फिरने के लिए गए तो इतने सारे साधु-संतों को देखकर आश्चर्य किया तथा प्रश्न किया कि किस उपलक्ष्य में आए हो? उन्होंने बताया कि इस शहर के सेठ कबीर जुलाहा यज्ञ कर रहे हैं। हमारे पास पत्र गया था, हम आ गए हैं। तीन दिन का भोजन-भंडारा है। देखो पत्र साथ लाए हैं। रविदास जी को समझते देर नहीं लगी। परमेश्वर कबीर जी के पास घर पर गए। बताया कि हे प्रभु! अबकी बार तो काशी त्यागकर कहीं अन्य शहर में चलना होगा। सब बात बताई। परमात्मा कबीर जी संत रविदास जी की बात सुनकर चिंतित नहीं हुए। हँसे तथा बोले कि हे रविदास! बात सुन! बैठ जा भक्ति कर। परमात्मा आप संभालेगा। कबीर परमात्मा एक रूप में तो वहाँ कुटी में बैठे भजन करने का अभिनय कर रहे थे। अन्य रूप में सतलोक में गए। उनको पहले ही सतर्क कर रखा था। सतलोकवासियों ने असँख्यों बनजारे तथा बौड़ी (बैलों के ऊपर बोरे रखकर भोजन सामग्री भर रखी थी। एक बैल को बोरे समेत बंजारे लोग बोडी कहते थे) तैयार कर रखी थी।

जब कबीर जी सतलोक में बोडी लेने गए तो सतलोक वाले सेवक बोले कि हे कबीर भगवान! ले जाओ जितनी आवश्यकता है। हे कबीर सृजनहार! वह तो (खंजूस) भूखा निर्धन लोक है। कबीर जी ने उनमें से नौ लाख बौडी तथा कुछ बनजारे वाले वेश में भक्त सेवादार साथ लिए तथा स्वयं केशव बंजारे का रूप धारण किया। एक पलक (क्षण) में पृथ्वी के ऊपर आ गए। काशी शहर में तंबू (ज्मदज) लगाए। पाँच रंग के झंडे सतलोक वाले लगाए। भंडारे में कोई खाना खाओ, कोई रोक-टोक नहीं थी। यह नहीं था कि जिनके नाम निमंत्रण पत्र गया है, वे अपनी चिट्ठी तथा नाम-पता दिखाओ और खाना खाओ जैसा कि काल लोक वाले साधु किया करते थे। सूखा सीधा के लिए आटा, खांड, चावल, घी, दाल सब दी जा रही थी। मिठाई, लड्डू, जलेबी, चंगेर (बर्फी) सब खिलाई जा रही थी। जैसे कुबेर भंडारी ही पृथ्वी पर आया हो। बिना पकाया पक रहा था। टैंटों-तंबुओं में ढ़ेर के ढ़ेर मिठाईयों के लगे थे। कड़ाहे चावल, खीर, हलवा के भरे थे। सब खा रहे थे। दक्षिणा दी जा रही थी। कबीर परमेश्वर की जय-जयकार हो रही थी। बैल बिना सींगों वाले थे। बैल पृथ्वी से छः इंच ऊपर-ऊपर चल रहे थे। पृथ्वी के ऊपर पैर नहीं रख रहे थे क्योंकि यह पृथ्वी किटाणुओं से भरी है। पैरों के नीचे जीव मारने से पाप लगता है। तीन दिन तक सब सम्प्रदायों के व्यक्ति भोजन से तृप्त किए। षटदर्शन पंथों वाले साधुओं ने असँख्यों सीधे (एक व्यक्ति का एक समय की सूखी सामग्री, चावल, खांड, दाल, आटा, घी आदि-आदि) ले लिये। एक वर्ष का भोजन संग्रह कर ले गए। तीन दिन यहाँ छककर खा गए।

कबीर साहेब द्वारा म्र्त सेऊ को जीवित करना कबीर साहेब के आदेश के सामने नेकी और सम्मन कुछ नही कर सकते थे और उन्होंने भोजन को छः जगह परोस दिया। तब कबीर साहेब (भगवान् कविर्देव) जी ने सेउ को आवाज लगाई और कहा कि पुत्र सेउ आओ भोजन ग्रहण करो। परमेश्वर की आवाज सुनकर सेउ वहां उपस्थित हो गया और भोजन ग्रहण करने लगा।
यह देख नेकी और उसके पति सम्मन देखने के लिए कमरे में गए और वहां उन्होंने पाया की ना तो सेउ की गर्दन पर की निशान था और न ही कमरे में धड़ और गर्दन सिर्फ खून के कुछ छींटे थे जो दिखने मात्र थे ताकि उन्हें विश्वास दिलाया जा सके। तब कबीर साहेब ने कहा कि सिर चोरों का कलम किया जाता है संतो का नहीं। संत तो हमेशा ही क्षमा के पात्र होते हैं। यह बात कबीर साहेब कहते हैं की –

आओ सेऊ जीम लो, ये प्रशाद प्रेम ,शीश काटत हैं चोरों के, साधो के नित क्षेम


कबीर साहेबइसके बाद कबीर साहेब ने सम्मन को बहुत धन दिया और उसी जन्म मे सम्मन को उसी शहर का सबसे धनवान सेठ बना दिया। अब नेकी, सेऊ और सम्मन का पूरा परिवार अपना खुशहाल जीवन व्यतीत करने लगे थे। और उनका जीवन सफल हुआ। उन्होंने कबीर साहेब जी से तीनो नाम पाकर अपने आप को जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त कर लिया। कबीर साहेब जी (कविरग्नि) जी के बहुत से ऐसे दिव्य कार्य हैं, जिनसे यह स्पष्ट होता है कि वे स्वयं, पूर्ण परमात्मा हैं। सामवेद में सांख्य सं॰ 822, यह वर्णित है कि कविर्देव अपने सच्चे भगत की आयु बढ़ते हैं। वे हमेशा ही अपने सच्चे भक्त का साथ देते हैं। अतः उनकी भक्ति से ही मुक्ति संभव है। 
कौन है वर्तमान में कबीर साहेब जैसा सतगुरु?
आज इस पूरी पृथ्वी पर सिर्फ संत रामपाल जी महाराज ही वह पूर्ण सतगुरु है जो कि कबीर परमेश्वर जी का ज्ञान सभी आत्माओं को पहुंचा सकते हैं। संत रामपाल जी महाराज द्वारा बताई गई सतभक्ति करने से मनुष्य का पूर्ण मोक्ष हो सकता है तथा परमात्मा प्राप्ति हो सकती है। कबीर साहेब जी की आगे की लीलाओं को जानने के लिए कृपया संत रामपाल जी महाराज का सत्संग अवश्य देखें इन चैनलों पर 👇

साधना चैनल पर शाम 07:30 बजे
ईश्वर चैनल पर सुबह 6:00 बजे
श्रद्धा चैनल पर दोपहर 02:00 बजे
संत रामपाल जी महाराज द्वारा सभी धर्म ग्रंथों से प्रमाणित लिखित ज्ञान गंगा पुस्तक Pdf घर बैठे डाउनलोड कर अवश्य पढ़ें।











Comments

Popular posts from this blog

Kabir jayanti 2022

Happy Navratri wishes 2023/ Shardiya Navratri